राकेश और सुनीता – अधूरी मोहब्बत की सच्ची दास्तान
"राकेश और सुनीता – अधूरी मोहब्बत की सच्ची दास्तान"
यह कहानी सिर्फ एक प्रेम कहानी नहीं है,
बल्कि वो तड़प है जो एक-दूसरे के बिना जी न सकने वाले दो दिलों में बसी है।
राकेश और सुनीता का प्यार अमर तो है, मगर अधूरा...
पहला मिलन:
कॉलेज के पहले दिन जब राकेश ने सुनीता को पहली बार देखा, वो पल उसके दिल में हमेशा के लिए बस गया।
सुनीता की मुस्कान, उसकी सादगी, और उसके बात करने का तरीका — सब कुछ राकेश के लिए खास था।
धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती गहरी होती गई।
फोन पर घंटों बातें होती थीं, छोटी-छोटी मुलाकातें होती थीं — और हर मुलाक़ात प्यार को और मजबूत करती जाती थी।
दोनों एक-दूसरे के बिना एक पल भी नहीं रह सकते थे।
प्यार की कसमें:
राकेश ने सुनीता से वादा किया था:
"मैं तुम्हें कभी छोड़ूंगा नहीं, चाहे कुछ भी हो जाए।"
और सुनीता ने भी उसी नज़रों में देखा था:
"हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी, चाहे दुनिया कुछ भी कहे।"
उनका प्यार सच्चा था — बेइंतहां सच्चा।
मुश्किलों की शुरुआत:
लेकिन वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता।
जब सुनीता के परिवार को उनके रिश्ते का पता चला, तो उन्होंने सख्त ऐतराज़ जताया।
उनका कहना था कि "हम अपनी बेटी की शादी सिर्फ अपनी ही बिरादरी में करेंगे।"
बिना किसी जातिवादी शब्दों के, समाज का सख्त रवैया सामने आ गया।
सुनीता को घर से बाहर निकलने की मनाही हो गई।
फोन छीन लिया गया, उसकी सारी आज़ादी खत्म कर दी गई।
राकेश हर रोज़ उस गली के पास जाता था जहाँ सुनीता रहती थी।
बस एक झलक पाने के लिए...
पर वो ना दिखती थी, ना आवाज़ देती।
तड़प और आँसू:
राकेश दिन-रात सुनीता की याद में रोता रहता।
खाना-पीना छोड़ दिया था।
उसकी मुस्कान कहीं खो गई थी।
सुनीता भी बहुत परेशान थी।
कमरे में बंद रहकर बस एक ही ख्याल आता: "काश मैं उससे मिल पाती..."
दोनों जी तो रहे थे, लेकिन एक-दूसरे के बिना मरने जैसे हालात थे।
टूटे सपने:
कुछ हफ्तों बाद, राकेश को पता चला कि सुनीता की सगाई तय कर दी गई है।
जब एक लड़का उसे देखने आया, तो राकेश का दिल टूट कर बिखर गया।
वो दूर से उस दिन सब देख रहा था — छुपकर।
सुनीता की आंखें उस दिन भी राकेश को ढूंढ़ रही थीं...
पर मिल नहीं सकी।
सगाई हो गई।
अब शादी भी तय हो गई।
अधूरी मोहब्बत:
आज भी राकेश उसी गली में जाता है,
जहाँ कभी सुनीता की हँसी गूंजती थी।
अब वहां सिर्फ ख़ामोशी है।
सुनीता, अब एक नई जिंदगी में है,
पर उसका दिल अब भी उसी पुराने नाम को पुकारता है — राकेश।
राकेश और सुनीता की मोहब्बत आज भी जिंदा है।
वो अधूरी ज़रूर है,
पर उतनी ही सच्ची है जितनी एक दिल की धड़कन।
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