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राकेश और सुनीता की अधूरी मगर सच्ची मोहब्बत – एक दिल को छू लेने वाली प्रेम कहानी

राकेश और सुनीता की अधूरी मगर सच्ची मोहब्बत – एक दिल को छू लेने वाली प्रेम कहानी

प्यार एक ऐसा एहसास है जो न तो समय देखता है, न जात-पात और न ही समाज की बनाई सीमाएं। यह केवल दो दिलों का पवित्र रिश्ता होता है। राकेश और सुनीता की प्रेम कहानी भी एक ऐसा ही भावनात्मक अध्याय है, जो आज भी बहुतों को सच्चे प्यार की गहराई का एहसास कराती है। यह कहानी अधूरी है, लेकिन उतनी ही सच्ची और प्रेरणादायक।

पहली मुलाकात – 17 मई 2019

राकेश एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क के पद पर कार्यरत था। वह स्वभाव से शांत, मेहनती और बेहद ईमानदार था। उसी ऑफिस में 17 मई 2019 को सुनीता नाम की एक नई महिला अधिकारी की नियुक्ति हुई। वह पढ़ी-लिखी, आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी महिला थी। शुरू में दोनों के बीच औपचारिक संवाद ही होता था, लेकिन धीरे-धीरे वह संवाद एक गहरे जुड़ाव में बदलने लगा।

राकेश को सुनीता की मुस्कान बहुत भाती थी और सुनीता को राकेश की सादगी, शालीनता और विनम्रता प्रभावित करती थी। ऑफिस में एक ही टीम में काम करते हुए उनके बीच बातचीत बढ़ने लगी। लंच ब्रेक की चाय, मीटिंग के बाद की मुस्कानें और ऑफिस के गलियारों में छुपे-छुपे जज़्बात धीरे-धीरे दोस्ती का रूप लेने लगे।




प्यार की शुरुआत

कुछ ही महीनों में दोनों की दोस्ती इतनी मजबूत हो गई कि वे एक-दूसरे से अपने मन की बातें साझा करने लगे। 5 अक्टूबर 2019 को, एक ऑफिस टूर के दौरान, जब दोनों एक मंदिर के दर्शन के लिए साथ गए, राकेश ने पहली बार सुनीता से अपने दिल की बात कही। उसकी आवाज़ में ईमानदारी और आंखों में सच्चाई थी।

सुनीता थोड़ी देर तक चुप रही, लेकिन फिर मुस्कुराते हुए उसने कहा, "मैं भी कुछ महीनों से यही महसूस कर रही थी।"

उस दिन से उनके रिश्ते को नाम मिला – मोहब्बत।

समाज की दीवारें और सच्चाई

जैसे-जैसे उनका रिश्ता मजबूत होता गया, उन्हें एक-दूसरे की ज़िंदगी की जटिलताओं का भी अहसास हुआ। राकेश पहले से शादीशुदा था, हालांकि वह अपनी पत्नी के साथ खुश नहीं था। उसकी शादी पारिवारिक दबाव में कम उम्र में ही हो गई थी और पिछले कई वर्षों से वह एक ठंडी, समझौते भरी ज़िंदगी जी रहा था।

दूसरी ओर, सुनीता का परिवार बेहद पारंपरिक था और अंतरजातीय विवाह के सख्त खिलाफ। जब उसने अपने माता-पिता को राकेश के बारे में बताया तो उन्होंने साफ़ मना कर दिया और जल्द ही उसकी शादी कहीं और तय कर दी।

एक कठिन निर्णय

राकेश और सुनीता दोनों के लिए यह स्थिति अत्यंत कठिन थी। वे चाहते थे कि उनका प्यार किसी की ज़िंदगी को तोड़े बिना आगे बढ़े। राकेश ने कई बार अपनी पत्नी से अलग होने की बात सोची, लेकिन बच्चों और पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण वह ऐसा नहीं कर सका। सुनीता भी अपने माता-पिता की इज्ज़त और भरोसे को नहीं तोड़ना चाहती थी।

उन्होंने घंटों बात की, आंसू बहाए, साथ रहने के रास्ते तलाशे, लेकिन हर रास्ता कहीं न कहीं रुक जाता। अंततः उन्होंने यह निर्णय लिया कि वे भले ही साथ न रह सकें, लेकिन एक-दूसरे के प्यार की इज्ज़त ज़रूर करेंगे।

यादों में बसी मोहब्बत

समय बीतता गया, सुनीता की शादी हो गई और वह दूसरे शहर चली गई। राकेश ने भी खुद को अपने काम में डुबा लिया। लेकिन उनके दिलों में एक-दूसरे के लिए जो सम्मान और स्नेह था, वह कभी कम नहीं हुआ।

हर शुक्रवार को, सुनीता उसी मंदिर जाती है जहाँ उन्होंने साथ में दुआ की थी। वह आज भी भगवान से राकेश की सलामती की दुआ मांगती है।



राकेश के पास आज भी सुनीता की लिखी कुछ चिट्ठियाँ हैं, जिन्हें वह अकेले में पढ़ता है और मुस्कुराता है। उसकी आंखें नम हो जाती हैं लेकिन उसके चेहरे पर संतोष भी होता है कि उसने किसी को सच्चा प्यार किया था।

राकेश और सुनीता की प्रेम कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चा प्यार केवल साथ रहना नहीं होता, बल्कि एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना और त्याग करने का साहस भी सच्चे प्रेम का हिस्सा है। यह एक ऐसी मोहब्बत थी जो शारीरिक साथ से परे, आत्मिक जुड़ाव पर आधारित थी।

उनकी कहानी इस बात का प्रमाण है कि समाज, स्थिति और परिस्थिति चाहे जैसी भी हो, अगर प्यार सच्चा हो तो वह ताउम्र दिल में बसा रहता है – यादों, चिट्ठियों और दुआओं के रूप में।

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