सच्ची दोस्ती या स्वार्थ? - राकेश और हेमल की अनोखी कहानी
सच्ची दोस्ती या स्वार्थ? - राकेश और हेमल की अनोखी कहानी
दोस्ती, एक ऐसा रिश्ता जो खून के रिश्तों से भी बड़ा बन जाता है। लेकिन क्या हर दोस्ती वाकई सच्ची होती है? क्या हर मुस्कुराता चेहरा वाकई हमारे भले की सोचता है? आज हम आपको राकेश और हेमल की दोस्ती की एक सच्ची लेकिन जटिल कहानी बताएंगे, जिसमें दोस्ती के साथ-साथ स्वार्थ का भी एक गहरा पहलू जुड़ा है।
दुश्मनी से शुरू हुई दोस्ती
राकेश और हेमल की मुलाकात एक स्कूल बस में हुई थी। शुरू में दोनों के बीच मनमुटाव और झगड़े थे। एक बार हेमल ने राकेश की बेइज्जती भी कर दी थी। उस अपमान को राकेश ने दिल पर ले लिया और बदला लेने की ठान ली। लेकिन उसने लड़ाई नहीं की — उसने हेमल से दोस्ती करने का फैसला किया, ताकि वह समझ सके कि असल में हेमल जैसा इंसान है कौन।
दोस्ती का बदलता रूप
धीरे-धीरे उनकी दोस्ती गहरी होती चली गई। राकेश दिल से हेमल को अपना सच्चा दोस्त मानने लगा। वह हर मुश्किल में उसके साथ खड़ा रहता, हर काम में मदद करता। लेकिन हेमल का नजरिया अलग था।
हेमल हर बात में सिर्फ अपना फायदा देखता था। उसे जब बस में बैठना होता तो वह कह देता कि उसे तबीयत खराब है — और राकेश अपनी सीट छोड़ देता। कोई असाइन्मेंट करना हो, कोई लड़ाई निपटानी हो, या किसी लड़की से बात करनी हो — हर बार हेमल, राकेश से काम निकलवाता।
प्यार में भी छल
राकेश की एक प्यारी सी गर्लफ्रेंड थी जो उसके जीवन में खुशियाँ ला रही थी। लेकिन हेमल को यह रिश्ता अच्छा नहीं लगा। उसने झूठ और चालाकी से राकेश और उसकी गर्लफ्रेंड के बीच गलतफहमियाँ पैदा कर दीं। नतीजा यह हुआ कि दोनों अलग हो गए और राकेश टूट गया।
क्या यह दोस्ती थी?
राकेश ने हेमल को हमेशा एक सच्चा दोस्त माना, लेकिन हेमल ने हमेशा अपने स्वार्थ को आगे रखा। वह सिर्फ काम निकालने के लिए राकेश से जुड़ा रहा, ना कि दिल से।
अंत में सीख
दोस्ती का रिश्ता बहुत खास होता है, लेकिन हर किसी को दोस्त नहीं कहा जा सकता। यह कहानी हमें सिखाती है कि—
सच्चा दोस्त वह होता है जो मुश्किल समय में साथ दे।
जो सिर्फ अपना फायदा देखे, वह दोस्त नहीं बल्कि स्वार्थी होता है।
रिश्तों में पारदर्शिता और सच्चाई जरूरी है।
अगर आप भी किसी दोस्ती में सिर्फ समझौता कर रहे हैं, तो एक बार इस कहानी को याद जरूर करें।
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