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रिश्तों की आख़िरी कड़ी - राकेश और सुनीता की प्रेम कहानी

प्रेम सिर्फ साथ रहने का नाम नहीं है, बल्कि वह एहसास है जो ज़िन्दगी भर दिलों में जिंदा रहता है। राकेश और सुनीता की प्रेम कहानी एक ऐसे सच्चे रिश्ते की मिसाल है, जो जीवन की कठोर परिस्थितियों के बावजूद कभी फीका नहीं पड़ा। ये कहानी सिर्फ एक प्रेम कहानी नहीं, बल्कि समर्पण, त्याग और सच्चे प्यार की गवाही है।

कॉलेज के दिनों की शुरुआत (2014 – 2017)

राकेश और सुनीता की पहली मुलाकात 2014 में एक नामी कॉलेज के साहित्य विभाग में हुई थी। राकेश एक शांत, संकोची लेकिन भावुक छात्र था, जबकि सुनीता आत्मविश्वासी, हंसमुख और रचनात्मक विचारों से भरपूर थी।

दोनों की दोस्ती कविताओं और किताबों के माध्यम से शुरू हुई। हर सुबह राकेश क्लास से पहले सुनीता के लिए एक फूल लाता, और बदले में सुनीता उसकी नोटबुक पर कविता की दो पंक्तियाँ लिख देती थी। यह रोज़मर्रा की छोटी-छोटी बातें उनके बीच के गहरे लगाव को दर्शाने लगीं।



प्यार की गहराई

तीन साल की दोस्ती के दौरान उनका रिश्ता एक मजबूत बंधन में बदल चुका था। कॉलेज की लाइब्रेरी, कैंटीन, और कविता प्रतियोगिताएं उनके प्यार की गवाह बन चुकी थीं। 14 फरवरी 2017 को राकेश ने पहली बार सुनीता को खुले दिल से अपने प्यार का इज़हार किया और उसी दिन दोनों ने अपने रिश्ते को एक नाम दिया।

पारिवारिक मतभेद

कॉलेज खत्म होते ही दोनों ने अपने भविष्य की योजनाएं बनानी शुरू कीं, लेकिन ज़िंदगी आसान नहीं थी। राकेश का परिवार पारंपरिक सोच वाला था और अंतरजातीय रिश्तों को स्वीकार नहीं करता था, जबकि सुनीता के माता-पिता आधुनिक सोच के थे, लेकिन उन्हें एक आर्थिक रूप से संघर्षरत युवक पसंद नहीं था।

इन मतभेदों के बावजूद दोनों ने एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ा। वे नौकरी के लिए प्रयास करते रहे और एक बेहतर भविष्य के लिए मेहनत करने लगे।

बीमारी की दस्तक (2019)

2019 के शुरुआत में राकेश को बार-बार बुखार और कमजोरी की शिकायत होने लगी। शुरू में उसने इसे नज़रअंदाज़ किया, लेकिन जब स्थिति बिगड़ने लगी तो उसने अस्पताल में जांच कराई। रिपोर्ट में पता चला कि वह एक गंभीर ब्लड डिसऑर्डर से पीड़ित था।

यह सुनकर सुनीता टूट गई, लेकिन उसने राकेश के सामने कभी अपनी भावनाएं जाहिर नहीं कीं। वह दिन-रात अस्पताल में उसकी सेवा करती, दवाइयों से लेकर भावनात्मक सहारे तक, उसने हर ज़िम्मेदारी निभाई।

आख़िरी लम्हा (28 जून 2020)

28 जून 2020 को राकेश की हालत बहुत नाज़ुक हो गई थी। ICU में भर्ती राकेश का शरीर धीरे-धीरे जवाब दे रहा था। उस रात सुनीता उसके बिस्तर के पास बैठी थी, उसका हाथ थामे हुए।

उसने कहा, "अगर तुम मुझसे सच्चा प्यार करते हो, तो बस एक बार मेरी आँखों में देख लो।"

राकेश ने अपनी आंखें खोलीं, बेहद धीमी मुस्कान के साथ सुनीता की आंखों में देखा और फिर धीरे-धीरे हमेशा के लिए सो गया।

सुनीता की स्मृतियाँ

राकेश के जाने के बाद, सुनीता ने खुद को समाज सेवा और बच्चों की शिक्षा में झोंक दिया। लेकिन हर साल 28 जून को वह उसी अस्पताल के उसी कोने में जाकर कुछ समय बिताती है, जहां राकेश ने उसकी आंखों में आखिरी बार प्यार देखा था। वह वहां बैठकर राकेश की पसंदीदा कविताएं पढ़ती है, और एक मोमबत्ती जलाती है।




राकेश और सुनीता की प्रेम कहानी हमें यह सिखाती है कि प्यार केवल साथ जीने का नाम नहीं, बल्कि सच्चे एहसासों का वह पुल है जो जीवन और मृत्यु के पार भी कायम रहता है। यह कहानी हमें यह समझाती है कि सच्चा प्यार न समय देखता है, न हालात, और न ही परिणाम। वह बस होता है — निस्वार्थ, गहरा और सच्चा।

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