सच्चा प्यार या समाज की बंदिशें? राकेश और सुनीता की अधूरी प्रेम कहानी
सच्चा प्यार या समाज की बंदिशें? राकेश और सुनीता की अधूरी प्रेम कहानी
प्यार एक ऐसा एहसास है जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल होता है। यह दिल से दिल तक का रिश्ता होता है, जिसमें दो लोग एक-दूसरे की खुशी में अपनी खुशी ढूंढते हैं। ऐसी ही एक सच्ची प्रेम कहानी है राकेश और सुनीता की, जो एक-दूसरे से बेहद मोहब्बत करते हैं, लेकिन उनके बीच समाज की दीवार खड़ी हो गई है।
राकेश और सुनीता का रिश्ता
राकेश और सुनीता बचपन से एक-दूसरे को जानते हैं। स्कूल के दिनों से शुरू हुआ उनका रिश्ता वक्त के साथ गहराता चला गया। वे दोनों हर पल साथ बिताना चाहते थे। एक-दूसरे के सपनों में रंग भरना उनका मकसद था। लेकिन जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा, समाज और परिवार की अपेक्षाएँ उनके प्यार पर हावी होने लगीं।
सुनीता की सगाई: एक अनचाहा मोड़
हाल ही में सुनीता के परिवार ने उसकी सगाई किसी और से कर दी, बिना उसकी मर्जी जाने। सुनीता अंदर से टूट गई, लेकिन परिवार की मर्यादा के कारण वह कुछ कह नहीं सकी। उधर राकेश यह खबर सुनकर बुरी तरह बिखर गया। वह सुनीता के बिना अपनी जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकता।
राकेश की भावनात्मक स्थिति
राकेश दिन-रात सुनीता की यादों में खोया रहता है। वह हर पल यही सोचता है कि अगर सुनीता उसकी जिंदगी में नहीं रही, तो वह कैसे जिएगा। वह टूट चुका है, मगर अभी भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है। वह चाहता है कि समाज और परिवार उनकी सच्ची मोहब्बत को समझे और उन्हें एक होने दे।
समाज की भूमिका और सोच में बदलाव की ज़रूरत
हमारे समाज में आज भी कई बार बच्चों की भावनाओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है। प्रेम को समझने के बजाय लोग 'लोग क्या कहेंगे' जैसी बातों में उलझे रहते हैं। राकेश और सुनीता की कहानी सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक आइना है उस मानसिकता का, जिसे बदलने की सख्त जरूरत है।
निष्कर्ष
प्यार जब सच्चा हो, तो उसे मंज़िल मिलनी ही चाहिए। राकेश और सुनीता की कहानी हमें यह सिखाती है कि प्यार किसी बंधन या परंपरा का मोहताज नहीं होना चाहिए। यह जरूरी है कि हम बच्चों की भावनाओं को समझें और उन्हें अपने जीवन के फैसले खुद लेने का अधिकार दें।
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