सुनीता और राकेश की अनोखी प्रेम कहानी – जहाँ हर लड़ाई के पीछे था बेइंतहां प्यार
सुनीता और राकेश की अनोखी प्रेम कहानी – जहाँ हर लड़ाई के पीछे था बेइंतहां प्यार
प्रस्तावना
प्यार की कहानियाँ तो बहुत सुनी होंगी, लेकिन कुछ कहानियाँ दिल को छू जाती हैं। सुनीता और राकेश की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। एक ऐसी प्रेम कहानी, जिसमें लड़ाई थी, नाराज़गी थी, आँसू थे—but इन सबके पीछे था एक गहरा और सच्चा प्यार। वे दोनों जितना लड़ते थे, उतना ही एक-दूसरे के और करीब आ जाते थे।
हर झगड़े में छुपा था एक रिश्ता
सुनीता और राकेश की मुलाकात आम थी, पर रिश्ता खास बनता चला गया। दोनों की सोच अलग थी, मिज़ाज अलग थे, लेकिन दिलों में सिर्फ एक-दूसरे के लिए जगह थी। उनकी रोज़ाना की बहसें, रूठना-मनाना, सबकुछ इस बात का सबूत था कि वे एक-दूसरे के बिना नहीं रह सकते थे।
एक दिन की बात – जब झगड़ा बन गया इम्तिहान
एक दिन दोनों की फिर से बहस हो गई। गुस्से में राकेश ने सुनीता का हाथ पकड़ लिया और उसे रोकने की कोशिश की। सुनीता ने गुस्से में खुद ही अपने होंठ पर चोट कर ली। वो रोते हुए बोली, "देखा, तुमने मुझे तकलीफ़ दी।" लेकिन उस दर्द के पीछे भी वो बस राकेश का ध्यान और प्यार चाहती थी। राकेश भी टूट गया। उसने सुनीता का हाथ थामा और कहा, "अगर तुम्हें कुछ हुआ, तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा।"
प्यार की गहराई – जहाँ शब्द कम पड़ जाते हैं
सुनीता और राकेश की कहानी बताती है कि सच्चे प्यार में नफरत नहीं होती, बस एहसास की कमी हो जाती है कभी-कभी। वे दोनों एक-दूसरे के लिए कुछ भी कर सकते थे—अपनी जान तक।
निष्कर्ष
हर प्रेम कहानी परियों जैसी नहीं होती, कुछ कहानियाँ हकीकत की ज़मीन पर लड़ी जाती हैं—जहाँ आँसू भी होते हैं और मुस्कान भी। सुनीता और राकेश की कहानी एक मिसाल है उन लोगों के लिए जो समझते हैं कि प्यार सिर्फ फूलों से सजी राह नहीं होती, बल्कि कभी-कभी काँटों से भी गुजरना पड़ता है।
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